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विनय निरंजन, झारखण्ड, गिरिडीह जिले के एक छोटे से गाँव बगोदर से ताल्लुक रखते हैं। स्कूली शिक्षा गाँव से हुई। लिखने-पढ़ने का शौक़ इतना था कि ग्यारह साल की उम्र में न्यूज़पेपर के स्टोरी कॉलम में स्टोरी लिखना शुरू कर दिया। औरों की तरह रेस में लगकर कोटा के कोचिंग सेंटर के चक्कर भी काट लिये। पता था कुछ होना जाना था नहीं। स्कूली ज्ञान सर के ऊपर से हवा बनकर बादलों में खो सा जाता था। फिर इलाहाबाद (प्रयागराज) के एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी से बी.टेक. करने लगे। इस बीच प्यार हुआ, इ़करार हुआ, पर बात आगे नहीं बढ़ी। इस सफ़र में थिएटर संस्था से जुड़ने का मौका मिला, जहाँ कहानी लिखने और डायरेक्शन का काम किया। एक मौक़ा ऐसा भी आया जहाँ युनिवर्सिटी ने कल्चरल विभाग के स्किट और स्टेज प्ले डिपार्टमेंट की डोर थमा दी, जिसमें इन्होंने आई.आई.टी. के कल्चरल विभाग में अवॉर्ड को अपने नाम किया। युनिवर्सिटी से डिग्री हासिल हुई, पर प्यार अधूरा ही रह गया और जब प्यार अधूरा रह जाता है तो इंसान अपने शौक़ को पूरा करने में लग जाता है। अपने थियेटर और लेखन से लगाव के वशीभूत विनय ने इलाहाबाद से सीधे मुम्बई के लिए ट्रेन पकड़ी और मायानगरी में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की। इनकी बहुत सी शॉर्ट फ़िल्में और डॉक्यूमेंट्री इंटरनेशनल, नेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में सराहना प्राप्त कर चुकी हैं। विनय छह वर्षों से फ़िल्म इंडस्ट्री में अपना सक्रिय योगदान दे रहे हैं।.

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Vinay niranjan

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विनय निरंजन, झारखण्ड, गिरिडीह जिले के एक छोटे से गाँव बगोदर से ताल्लुक रखते हैं। स्कूली शिक्षा गाँव से हुई। लिखने-पढ़ने का शौक़ इतना था कि ग्यारह साल की उम्र में न्यूज़पेपर के स्टोरी कॉलम में स्टोरी लिखना शुरू कर दिया। औरों की तरह रेस में लगकर कोटा के कोचिंग सेंटर के चक्कर भी काट लिये। पता था कुछ होना जाना था नहीं। स्कूली ज्ञान सर के ऊपर से हवा बनकर बादलों में खो सा जाता था। फिर इलाहाबाद (प्रयागराज) के एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी से बी.टेक. करने लगे। इस बीच प्यार हुआ, इ़करार हुआ, पर बात आगे नहीं बढ़ी। इस सफ़र में थिएटर संस्था से जुड़ने का मौका मिला, जहाँ कहानी लिखने और डायरेक्शन का काम किया। एक मौक़ा ऐसा भी आया जहाँ युनिवर्सिटी ने कल्चरल विभाग के स्किट और स्टेज प्ले डिपार्टमेंट की डोर थमा दी, जिसमें इन्होंने आई.आई.टी. के कल्चरल विभाग में अवॉर्ड को अपने नाम किया। युनिवर्सिटी से डिग्री हासिल हुई, पर प्यार अधूरा ही रह गया और जब प्यार अधूरा रह जाता है तो इंसान अपने शौक़ को पूरा करने में लग जाता है। अपने थियेटर और लेखन से लगाव के वशीभूत विनय ने इलाहाबाद से सीधे मुम्बई के लिए ट्रेन पकड़ी और मायानगरी में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की। इनकी बहुत सी शॉर्ट फ़िल्में और डॉक्यूमेंट्री इंटरनेशनल, नेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में सराहना प्राप्त कर चुकी हैं। विनय छह वर्षों से फ़िल्म इंडस्ट्री में अपना सक्रिय योगदान दे रहे हैं।.

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