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रमेश ‘कँवल’ का जन्म 25 अगस्त,1953 को जितौरा,पीरो, ज़िला भोजपुर, बिहार में हुआ। ये कलकत्ता विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक हैं। उर्दू लिपि सीखी है। अदीब का इम्तेहान भी पास किया है। कॉलेज के दिनों में ही इनकी पहली ग़ज़ल अगस्त 1972 में लुधियाना, पंजाब से प्रकाशित होने वाले मशहूर रिसाला परवाज़ में शाया हो चुकी है। उर्दू में “लम्स का सूरज” और “रंगे-हुनर” तथा हिंदी में “सावन का कँवल”, “शोहरत की धूप” और “स्पर्श की चाँदनीं” अदबी हल्क़ों में मक़बूल हो चुकी हैं। आपने अपने उस्ताद हफ़ीज़ बनारसी मरहूम को समर्पित “अक़ीदत के फूल” और“2020 की नुमाइंदा ग़ज़लें” में अपनी संकलन एवं संपादन कला का प्रदर्शन किया है। आप बिहार प्रशासनिक सेवा के संयुक्त सचिव स्तर से सेवानिवृत पदाधिकारी हैं। कमाल यह है कि लगभग 3 साल तक पटना में एडीएम लॉ एण्ड आर्डर की व्यस्तता के बावजूद आप शे’रो-शायरी से बेवफ़ाई नहीं कर सके।

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Ramesh Kanwal

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रमेश ‘कँवल’ का जन्म 25 अगस्त,1953 को जितौरा,पीरो, ज़िला भोजपुर, बिहार में हुआ। ये कलकत्ता विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक हैं। उर्दू लिपि सीखी है। अदीब का इम्तेहान भी पास किया है। कॉलेज के दिनों में ही इनकी पहली ग़ज़ल अगस्त 1972 में लुधियाना, पंजाब से प्रकाशित होने वाले मशहूर रिसाला परवाज़ में शाया हो चुकी है। उर्दू में “लम्स का सूरज” और “रंगे-हुनर” तथा हिंदी में “सावन का कँवल”, “शोहरत की धूप” और “स्पर्श की चाँदनीं” अदबी हल्क़ों में मक़बूल हो चुकी हैं। आपने अपने उस्ताद हफ़ीज़ बनारसी मरहूम को समर्पित “अक़ीदत के फूल” और“2020 की नुमाइंदा ग़ज़लें” में अपनी संकलन एवं संपादन कला का प्रदर्शन किया है। आप बिहार प्रशासनिक सेवा के संयुक्त सचिव स्तर से सेवानिवृत पदाधिकारी हैं। कमाल यह है कि लगभग 3 साल तक पटना में एडीएम लॉ एण्ड आर्डर की व्यस्तता के बावजूद आप शे’रो-शायरी से बेवफ़ाई नहीं कर सके।

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