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कुणाल सिंह, ख़ुद को हिन्दी साहित्य का एक अदना उपासक मानने वाले युवा लेखक हैं। वस्तुतः इन्हें प्रेम प्रसंगों पर लिखना और पढ़ना रुचिकर लगता है किन्तु इनकी रचना में सामाजिक विसंगतियों का चित्रण भी बखूबी देखा जा सकता है। बिहार के सासाराम में जन्मे कुणाल, अपने जीवन के शुरूआती दौर में ही अपने माता-पिता के साथ इलाहाबाद आ गए थे जहाँ से उन्होंने अपनी स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण की है। वर्तमान में सरकारी सेवा के साथ-साथ, हिन्दी साहित्य सेवा में अपना रुझान रखने वाले कुणाल सिंह अब तक एक दर्जन से अधिक कृतियों का सृजन कर चुके हैं और ‘कुआर का क़र्ज़’ इनके क्रमबद्ध लेखन की पहली प्रकाशित प्रस्तुति है।

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कुणाल सिंह, ख़ुद को हिन्दी साहित्य का एक अदना उपासक मानने वाले युवा लेखक हैं। वस्तुतः इन्हें प्रेम प्रसंगों पर लिखना और पढ़ना रुचिकर लगता है किन्तु इनकी रचना में सामाजिक विसंगतियों का चित्रण भी बखूबी देखा जा सकता है। बिहार के सासाराम में जन्मे कुणाल, अपने जीवन के शुरूआती दौर में ही अपने माता-पिता के साथ इलाहाबाद आ गए थे जहाँ से उन्होंने अपनी स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण की है। वर्तमान में सरकारी सेवा के साथ-साथ, हिन्दी साहित्य सेवा में अपना रुझान रखने वाले कुणाल सिंह अब तक एक दर्जन से अधिक कृतियों का सृजन कर चुके हैं और ‘कुआर का क़र्ज़’ इनके क्रमबद्ध लेखन की पहली प्रकाशित प्रस्तुति है।

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