प्रभु श्री राम की तपोभूमि चित्रकूट धाम में 20 नवंबर को जन्मी डॉ विमला व्यास की कर्मभूमि पौराणिक काल से विश्वविख्यात तीर्थस्थल त्रिवेणी संगम प्रयागराज है! डॉ. विमला व्यास बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी हैं! यूँ तो विज्ञान की विद्यार्थी रहीं हैं, किंतु देशभर में उनकी ख्याति है उनके विभिन्न शैक्षिक सामाजिक साहित्यिक एवं अन्य प्रासंगिक विषयों पर विचारपरक लेखन, चिंतन और व्याख्यान के लिए। रसायन विज्ञान एवं मानव साधन विकास के क्षेत्र में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक लंबी वैज्ञानिक, क्षिक एवं प्रशासनिक पारी संपन्न की। शिक्षण प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करते हुए उन्होंने शोध अध्येताओं को सतत मार्गदर्शन प्रदान किया। चार दशकों का यह लंबा काल जिसमें उन्होंने अनेक शोध पत्र लिखे, समीक्षाएँ की, संपादन किया और विश्व के अनेक देशों यथा अमेरिका ,कनाडा, फ्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी एवं संयुक्त अरब मीरात के विभिन्न विश्वविद्यालयों में जाकर व्याख्यान देते हुए भारतवर्ष की ज्ञान परंपरा की ध्वजा लहराई है। उनका सामाजिक एवं साहित्यिक जीवन भी अत्यंत सक्रिय रहा है। माँ वीणा पाणि की विशेष कृपा के फलस्वरूप वो बाल्यकाल से ही साहित्यिक साधना मे रत रही हैं! उनकी कविताएँ और कहानियाँ साझा काव्य संग्रह तथा विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ-साथ रेडियो दूरदर्शन में भी प्रसारित होती रहती हैं! जिन्हें सुधि पाठकों श्रोताओं द्वारा भरपूर सराहना मिली है!
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प्रभु श्री राम की तपोभूमि चित्रकूट धाम में 20 नवंबर को जन्मी डॉ विमला व्यास की कर्मभूमि पौराणिक काल से विश्वविख्यात तीर्थस्थल त्रिवेणी संगम प्रयागराज है! डॉ. विमला व्यास बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी हैं! यूँ तो विज्ञान की विद्यार्थी रहीं हैं, किंतु देशभर में उनकी ख्याति है उनके विभिन्न शैक्षिक सामाजिक साहित्यिक एवं अन्य प्रासंगिक विषयों पर विचारपरक लेखन, चिंतन और व्याख्यान के लिए। रसायन विज्ञान एवं मानव साधन विकास के क्षेत्र में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एक लंबी वैज्ञानिक, क्षिक एवं प्रशासनिक पारी संपन्न की। शिक्षण प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करते हुए उन्होंने शोध अध्येताओं को सतत मार्गदर्शन प्रदान किया। चार दशकों का यह लंबा काल जिसमें उन्होंने अनेक शोध पत्र लिखे, समीक्षाएँ की, संपादन किया और विश्व के अनेक देशों यथा अमेरिका ,कनाडा, फ्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी एवं संयुक्त अरब मीरात के विभिन्न विश्वविद्यालयों में जाकर व्याख्यान देते हुए भारतवर्ष की ज्ञान परंपरा की ध्वजा लहराई है। उनका सामाजिक एवं साहित्यिक जीवन भी अत्यंत सक्रिय रहा है। माँ वीणा पाणि की विशेष कृपा के फलस्वरूप वो बाल्यकाल से ही साहित्यिक साधना मे रत रही हैं! उनकी कविताएँ और कहानियाँ साझा काव्य संग्रह तथा विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ-साथ रेडियो दूरदर्शन में भी प्रसारित होती रहती हैं! जिन्हें सुधि पाठकों श्रोताओं द्वारा भरपूर सराहना मिली है!