Description
‘ज़र्द सा चेहरा ज़िन्दगी’ हर उन तमाम किस्म के ज़र्द से ज़ज्बात की कविताओं की ज़र्द सी किताब है जिसमें एहसासात का वो ज़हीन और ख़ूबसूरत तानाबाना है जो हर किसी की ज़िन्दगी में कभी फूल बनकर तो कभी ख़ार बनकर ज़ज्बात के लहू में शामिल रहता है और ता़जा बहता है और एक दुःखद चित्रण है शब्दों के मेल से समाज की एक बदसूरत असलियत का, कविताएँ अक्सर तब ज़्यादा ख़ूबसूरत लगती हैं, जब उनमें ज़र्द से दर्द शामिल हों क्यूंकि एक दर्द मात्र ही ऐसा है जो हमें भरे फले पेड़ के समान झुकाये रखता है और शालीन रखता है हमारी ज़बान को… ज़िन्दगी ज़र्द है जिसका चेहरा मौत है असल में, बाकी के दिन तो स़फर की तरह कार्यरत हैं।