Description
यशोधरा का लेखन अद्भुत है । यशोधरा जैसे चरित्र को संस्कृत, बौद्ध, हिन्दी साहित्य ने भुला दियाया फिर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया। यशोधरा एक मा़त्र ऐसा चरित्र है जो सीता से भी बड़ा है। सीता ने तो अपने पति के साथ 14 वर्षो तक वन में जीवन यापन किया किन्तु यशोधरा ने तो राजमहल में रहते हुए भी वैधव्य पूर्ण जीवन जिया, सभी सुख-सुविधाओं के रहते हुए भी त्यागमय, सन्यासी सा जीवन जीया जो यशोधरा के चरित्र को एक औदात्य देता है और बड़ी ऊँचाई प्रदान करता है। यशोधरा वह चरित्र है जो दुनिया के किसी साहित्य में तुलनीय नहीं है। डॉ. राकेश ऋषभ ने अतिसूक्ष्मता के साथ यशोधरा का चरित्र ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में गढ़ा है जो वास्तविक, जीवंत व प्रमाणिक है। ऐसा चरित्र अन्यत्र दुर्लभ है। लेखनी की धार ऐसी चली है कि पढ़ते समय भी आँखों से आँसुओं की धार चलती है। यही यशोधरा नाटक की सार्थकता है।