Description
इस किताब में उत्तराखंड के लोक-जननायक, न्याय के देवता गोलू की जीवनगाथा को दर्ज किया गया है। इसमें उनके जन्म से लेकर उनके एक साहसी योद्धा बनने की कहानी को बहुत ही खूबसूरत अंदाज में पेश किया गया है। – नवभारत टाइम्स यह उपन्यास समाज के दमित वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। – हिन्दुस्तान, लखनऊ संस्करण लेखक ने नायक के सिंहासनारूढ़ होने की कथा को गाथा से हटकर यथार्थ का जामा पहनाया है। साथ ही राजधर्म, साधुधर्म और वर्तमान विसंगतियों का उपन्यास में सटीक चित्रण किया है। वस्तुत: गोलूज्य का नायकत्व समतावादी समाज के पोषण और गीता के कर्मवाक्य प्रस्थापक के रूप में हुआ है। कहीं जहाँ यथार्थ से हट कर चित्रण हुआ है वहाँ अतिमानवीय तत्वों का वर्णन भी आ गया है। लेखक ने उपन्यास के माध्यम से समाज की आधुनिक समस्या को उठाया है। – देव सिंह पोखरिया