Description
ये उपन्यास किसी कथानक को बयान नहीं करता, बल्कि कई घटनाओं को इस तरह क्रमबद्ध करता है कि वो कथानक लगने लगें। ये उपन्यास पाकिस्तान के उन लोगों की ही ज़िन्दगी को पेश नहीं करता जो कनाडा या अन्य किसी देश में जाकर बसे हैं, बल्कि इस बहाने दुनिया के उन तमाम लोगों के दुख-सुख को व्याख्यायित करता है जो किसी भी देश-जाति-धर्म के हैं और रो़जी-रोटी के लिए दूसरे देश में जाकर बसे हैं। ताहिर असलम गोरा ने इस उपन्यास के माध्यम से इस्लाम, मुसलमान, आतंकवाद और इनसे लगे-सगे अन्य मुद्दों पर विचारधारा के स्तर पर तर्वâपूर्ण ढंग से बहस की है। विचारणीय है कि जो लोग आतंक के पक्षधर हैं, उनकी प्रेरणा में कोई अवधारणा, कोई विचारधारा या कोई आदर्श कार्यरत होगा। ये उपन्यास उन तमाम अमानवीय विचारधाराओं और अप्राकृतिक जीवन-शैलियों को उधेड़ने की कोशिश करता है जिनके धागे इस्लामी बुनावट से निकलते हैं। व्यक्तिगत-से-व्यक्तिगत नॉस्टैल्जिया से लेकर वैश्विक घटनाओं और विडम्बनाओं को अपने में समेटे ये उपन्यास आपको किसी सुखान्त की ओर नहीं ले जायेगा, बल्कि आपको किसी क़िस्सागोई या कथात्मक मंत्र-मुग्धता से मुक्त भी करेगा। ये उपन्यास कुछ ऐसे गुणसूत्रों को प्रस्तुत करता है जो आश्चर्यजनक ढंग से कनाडा में घटने वाली किसी भी घटना को पाकिस्तान से जोड़ देते हैं। उपन्यास के गम्भीर पाठकों के लिए शिल्प और विषय के स्तर पर ये एक अनिवार्य रूप से पठनीय पुस्तक है।