Description
प्रस्तुत पुस्तक जिसका शीर्षक-‘पूर्वी उत्तर प्रदेश में अस्मिता चेतना एवं साम्प्रदायिक संघर्ष (1880-1947)’ है। यह पूर्वी उत्तर प्रदेश में विषेश कालखण्ड में हुई साम्प्रदायिक घटना का ऐतिहासिक विश्लेषण है जिनके आधार पर एक मान्य निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास किया गया है। 1880 ई0 का दशक ऐसा समय था जब राष्ट्रीय प्रवृत्तियाँ दस्तक दे चुकी थी। इसी परिप्रेक्ष्य में मैंने यह समय चुना। इस समय सामाजिक स्तर पर अस्मिता का प्रश्न महत्वपूर्ण होता जा रहा था क्योकि सामाजिक तथा धार्मिक आंदोलन से उपजी चेतना सामुदायिक अस्मिता रूप से बढ़ा रही थी। समाज में अलग-अलग समुदाय के संगठन कार्य करने लगे था। ये नवनिर्मित संगठन अपने समूह के वास्तविक प्रतिनिधि होने का दावा भी करते थे, जिससे सामाजिक ध्रुवीकरण को बल मिला। इस तरह मैंने अपने विषय की संकल्पना का धार्मिक तथा आर्थिक आधार पर परखने की कोशिश की और एक सर्वमान्य निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न किया है, क्योंकि साम्प्रदायिकता के पीछे धार्मिकता के साथ आर्थिक मुद्दे भी अभिन्न रूप से जुड़े प्रतीत होते हैं। प्रस्तुत पुस्तक के विभिन्न अध्याय तथा उपशीर्षक के माध्यम से एक मान्य निष्कर्ष तक पहुँचने की कोशिश की गयी है जिससे यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि साम्प्रदायिकता में अस्मिता चेतना महत्वपूर्ण होती है तथा इनका आधार मात्रा सामाजिक, धार्मिक न होकर आर्थिक भी होता है।
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