Description
हिन्दी ग़ज़ल के समकालीन परिदृश्य पर, ‘सज्जन’ धर्मेन्द्र एक जाना पहचाना नाम है। इनका पहला ग़ज़ल संग्रह ‘ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर’ सन २०१४ में अंजुमन प्रकाशन से प्रकाशित हुआ, और समीक्षकों एवं पाठकों दोनों के द्वारा समान रूप से सराहा गया। इन्होंने ग़ज़ल कहने की अपनी अनूठी शैली विकसित कर ली है, जो एक सीमा तक दुष्यंत कुमार और अदम गोंडवी की शैलियों से मिलती-जुलती होने के बावजूद कई मायनों में उनसे भिन्न है। ‘पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़’ इनका दूसरा ग़ज़ल संग्रह है, जिसमें ये समाज में गरीब और अमीर के बीच बढ़ते अंतर, भ्रष्टाचार और अनेकानेक सामाजिक बुराइयों की जिम्मेदार पूँजी और सत्ता को आड़े हाथों लेते हैं।