Description
कविता भावानुभूति है, इसमें मिलावट नहीं है, वह हृदय की सच्चाई का बयान है। सीधी सरल शब्दावली, अलंकारों के प्रयोग से प्राणवान हो गयी है। अन्य विधाओं की तरह ही ‘दोहा’ पर भी कवि सतीश बंसल की मजबूत पकड़ है। कवि दिनकर ने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ में कहा है ‘कवि की लेखनी असत्य के मार्ग का समर्थन नहीं करती। कविता कवि के हृदय की अनुभूति होती है। और इस अनुभूति की सामग्री सीधे समाज से आती है। समाज निराकार प्रतिमा है जिसकी धड़कन कवि के कलेजे में उठती है, जिसकी शंकाएँ और विश्वास कवि के मुख से उद्गीर्ण होते हैं।’ कवि सतीश बंसल, दिनकर जी के उपरोक्त कथन पर सही उतरते हैं, इनके दोहे कंठस्थ किये जाने योग्य हैं, समाज का दुख उनका दुख है, समाज का कल्याण देश का कल्याण है, यह उनकी दोहावली से विदित होता है।