राजमूर्ति सिंह ‘सौरभ’ का जन्म 10 सितम्बर 1958 को प्रतापगढ़ ज़िले के मान्धाता विकास खण्ड स्थित ग्राम पूरे लोहंग राय में हुआ। 24 मई 1982 से उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशासनिक सेवा से जुड़े, जहाँ से 30 सितम्बर 2018 में सेवानिवृत्त हुए।
‘लम्हा-लम्हा सोच रहा हूँ’ इनका दूसरा ग़ज़ल-संग्रह है। पहला संग्रह ‘ख़ुश्बू आनेवाली है’ सन 2009 में आया था, जिसे पाठकों ने बहुत सराहा था।
सेवाकाल के लगभग 36 बरस इन्होंने प्रतापगढ़ तथा इसके पड़ोसी ज़िलों जैसे सुल्तानपुर, फ़तेहपुर और फ़ैज़ाबाद में गुज़ारे। अपने इस भ्रमणशील जीवन-क्रम के दौरान विभिन्न रचनाकारों के सम्पर्क में रहे। उन सबसे प्रभावित हुए और उन्हें प्रभावित भी किया।
ये ग़ज़ल-विधा के विशिष्ट हस्ताक्षर होने के साथ-साथ अपने समकालीन तमाम युवा कवियों के लिए आदर्श और प्रेरणा का स्रोत भी हैं।
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राजमूर्ति सिंह ‘सौरभ’ का जन्म 10 सितम्बर 1958 को प्रतापगढ़ ज़िले के मान्धाता विकास खण्ड स्थित ग्राम पूरे लोहंग राय में हुआ। 24 मई 1982 से उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशासनिक सेवा से जुड़े, जहाँ से 30 सितम्बर 2018 में सेवानिवृत्त हुए।
‘लम्हा-लम्हा सोच रहा हूँ’ इनका दूसरा ग़ज़ल-संग्रह है। पहला संग्रह ‘ख़ुश्बू आनेवाली है’ सन 2009 में आया था, जिसे पाठकों ने बहुत सराहा था।
सेवाकाल के लगभग 36 बरस इन्होंने प्रतापगढ़ तथा इसके पड़ोसी ज़िलों जैसे सुल्तानपुर, फ़तेहपुर और फ़ैज़ाबाद में गुज़ारे। अपने इस भ्रमणशील जीवन-क्रम के दौरान विभिन्न रचनाकारों के सम्पर्क में रहे। उन सबसे प्रभावित हुए और उन्हें प्रभावित भी किया।
ये ग़ज़ल-विधा के विशिष्ट हस्ताक्षर होने के साथ-साथ अपने समकालीन तमाम युवा कवियों के लिए आदर्श और प्रेरणा का स्रोत भी हैं।