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‘‘रेतीली जिन्दगी’’ मेरा प्रथम काव्य संग्रह है। इसी कारण यह मेरे हृदय की आत्म ध्वनि है। यह पुस्तक मेरी निजी भावनाओं और अनुभूतियों का काव्य रूपांतरण है। इस काव्य संग्रह में जीवन के सफर में मन, चेतना और दृष्टि के द्वारा भोगे हुए अनुभव शामिल है। इसमें जहाँ एक ओर हिन्दी उर्दू की मिठास है, तो दूसरी ओर देशकाल समाज और नारी दशा की वेदना है। यह सरल शब्दों में लिखी गई गहरे संवेदनाओं की कविता है।
मैं घाघरा नदी के कछारो में पैदा हुआ पानी से निकल कर इस जमीं पर संघर्ष कर अस्तित्व की तलाश में जारी संघर्षों का बयान दर्ज है। अंधेरों से जंग लड़ते हुए जीवन में जो भी मिला वह सहर्ष स्वीकार है जो भी शब्दों की शक्ति मुझे इस समाज से मिली है, मैं उसको अपनी कविताओं के माध्यम से इस समाज को वापस कर यथार्थ बोध कराने का प्रयास कर रहा हूँ।
मैं प्रदीप माँझी मोहल्ला छज्जापुर पो0 टाण्डा जिला अम्बेडकर नगर उ०प्र० शिक्षक धर्म का बखूबी निर्वहण करते हुए सौभाग्य से हिन्दी साहित्य के दैदीप्यमान ज्योतिपुंज आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की पावनभूमि (कलवारी) बस्ती से साहित्य सृजन में रत हूँ।
मुझे विश्वास है कि इस संग्रह की कवितायें आप सभी स्नेही सुधी पाठकों के मानस पटल पर एक गहरी छाप छोड़ेगी । अतः साहित्य की अलग-अलग धाराओं में समवेत रूप से गोता लगाने वाले काव्य सुधी रसिकों के कर कमलों में यह कृति सादर निवेदित करता हूँ।
– प्रदीप माँझी

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Pradeep Manji

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‘‘रेतीली जिन्दगी’’ मेरा प्रथम काव्य संग्रह है। इसी कारण यह मेरे हृदय की आत्म ध्वनि है। यह पुस्तक मेरी निजी भावनाओं और अनुभूतियों का काव्य रूपांतरण है। इस काव्य संग्रह में जीवन के सफर में मन, चेतना और दृष्टि के द्वारा भोगे हुए अनुभव शामिल है। इसमें जहाँ एक ओर हिन्दी उर्दू की मिठास है, तो दूसरी ओर देशकाल समाज और नारी दशा की वेदना है। यह सरल शब्दों में लिखी गई गहरे संवेदनाओं की कविता है।
मैं घाघरा नदी के कछारो में पैदा हुआ पानी से निकल कर इस जमीं पर संघर्ष कर अस्तित्व की तलाश में जारी संघर्षों का बयान दर्ज है। अंधेरों से जंग लड़ते हुए जीवन में जो भी मिला वह सहर्ष स्वीकार है जो भी शब्दों की शक्ति मुझे इस समाज से मिली है, मैं उसको अपनी कविताओं के माध्यम से इस समाज को वापस कर यथार्थ बोध कराने का प्रयास कर रहा हूँ।
मैं प्रदीप माँझी मोहल्ला छज्जापुर पो0 टाण्डा जिला अम्बेडकर नगर उ०प्र० शिक्षक धर्म का बखूबी निर्वहण करते हुए सौभाग्य से हिन्दी साहित्य के दैदीप्यमान ज्योतिपुंज आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की पावनभूमि (कलवारी) बस्ती से साहित्य सृजन में रत हूँ।
मुझे विश्वास है कि इस संग्रह की कवितायें आप सभी स्नेही सुधी पाठकों के मानस पटल पर एक गहरी छाप छोड़ेगी । अतः साहित्य की अलग-अलग धाराओं में समवेत रूप से गोता लगाने वाले काव्य सुधी रसिकों के कर कमलों में यह कृति सादर निवेदित करता हूँ।
– प्रदीप माँझी

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