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मेरे ग़ज़ल-संग्रह अंधा चिराग़ में मेरी ग़ज़लें, मेरे विचार, भावना, कल्पना से ओत-प्रोत हैं। मेरा विचार है कि वर्तमान परिदृश्य में शासक व पूँजीपति वर्ग का रवैया ग़रीब, मज़दूर, किसान व दबे-कुचले वर्गों के हक़ अधिकारों के प्रति संजीदा नज़र नहीं आता, केवल हवा-हवाई दावे ही नजर आते हैं। मानव समाज में फैली असमानता, आये दिन होता शोषण सत्ताधीशों को दिखायी नहीं देता जो चिंताजनक है। यह संग्रह मेरा प्रथम प्रयास है; हो सकता है कमियाँ हों। मेरा आपसे निवेदन है कि संग्रह पढ़कर मुझे कमियाँ से अवगत करायें। सुविज्ञ पाठकों के लिए यह एक ग़ज़ल-संग्रह ही नहीं है, बल्कि मेरी कल्पना स्वाभाविक धरातल की हकीकत का बोध कराती है। मेरा यह मकसद बिलकुल नहीं है कि किसी की भावना व आस्था को ठेस पहुँचे… मात्र हालात से अवगत कराना है।.

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Indra Singh Arsela

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मेरे ग़ज़ल-संग्रह अंधा चिराग़ में मेरी ग़ज़लें, मेरे विचार, भावना, कल्पना से ओत-प्रोत हैं। मेरा विचार है कि वर्तमान परिदृश्य में शासक व पूँजीपति वर्ग का रवैया ग़रीब, मज़दूर, किसान व दबे-कुचले वर्गों के हक़ अधिकारों के प्रति संजीदा नज़र नहीं आता, केवल हवा-हवाई दावे ही नजर आते हैं। मानव समाज में फैली असमानता, आये दिन होता शोषण सत्ताधीशों को दिखायी नहीं देता जो चिंताजनक है। यह संग्रह मेरा प्रथम प्रयास है; हो सकता है कमियाँ हों। मेरा आपसे निवेदन है कि संग्रह पढ़कर मुझे कमियाँ से अवगत करायें। सुविज्ञ पाठकों के लिए यह एक ग़ज़ल-संग्रह ही नहीं है, बल्कि मेरी कल्पना स्वाभाविक धरातल की हकीकत का बोध कराती है। मेरा यह मकसद बिलकुल नहीं है कि किसी की भावना व आस्था को ठेस पहुँचे… मात्र हालात से अवगत कराना है।.

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