हिन्दी-उर्दू भाषा और साहित्य में बराबर संतुलन बनाकर गम्भीरता से काम करनेवालों में दीपक रूहानी ख़ासे चर्चित हैं। इनकी उम्र लगभग चालीस बरस है। पिछले पंद्रह बरसों से बिना किसी शोर-शराबे के उर्दू भाषा और साहित्य की तमाम सामग्रियों को हिंदी में अनुवादित और लिप्यंतरित करने में लगे हुए हैं। इनकी सम्पादित-अनूदित और मौलिक किताबें महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों से प्रकाशित हो चुकी हैं। क़स्बाई इलाक़े सीमित संसाधनों के बीच रहकर भी ग़ज़ल-विधा पर केंद्रित छमाही पत्रिका ‘ग़ज़लकार’ का सम्पादन और प्रकाशन करके हिंदी और उर्दू की रिश्तेदारी बनाये रखने में सहयोग दे रहे हैं। ग़ज़ल और राहत साहब से मुहब्बत का ही नतीजा है कि इस किताब पर इन्होंने काम किया। हिन्दी-साहित्य में डॉक्टरेट दीपक रूहानी मूल रूप से ज़िला प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के रहनेवाले हैं और आजकल रोज़ी-रोटी के सिल्सिले में बिहार प्रांत के मधुबनी ज़िले में स्थित आर.के.कॉलेज में हिंदी के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं। ईमेल ही इनका स्थायी पता है – deepakruhani@gmail.com.
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हिन्दी-उर्दू भाषा और साहित्य में बराबर संतुलन बनाकर गम्भीरता से काम करनेवालों में दीपक रूहानी ख़ासे चर्चित हैं। इनकी उम्र लगभग चालीस बरस है। पिछले पंद्रह बरसों से बिना किसी शोर-शराबे के उर्दू भाषा और साहित्य की तमाम सामग्रियों को हिंदी में अनुवादित और लिप्यंतरित करने में लगे हुए हैं। इनकी सम्पादित-अनूदित और मौलिक किताबें महत्त्वपूर्ण प्रकाशनों से प्रकाशित हो चुकी हैं। क़स्बाई इलाक़े सीमित संसाधनों के बीच रहकर भी ग़ज़ल-विधा पर केंद्रित छमाही पत्रिका ‘ग़ज़लकार’ का सम्पादन और प्रकाशन करके हिंदी और उर्दू की रिश्तेदारी बनाये रखने में सहयोग दे रहे हैं। ग़ज़ल और राहत साहब से मुहब्बत का ही नतीजा है कि इस किताब पर इन्होंने काम किया। हिन्दी-साहित्य में डॉक्टरेट दीपक रूहानी मूल रूप से ज़िला प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के रहनेवाले हैं और आजकल रोज़ी-रोटी के सिल्सिले में बिहार प्रांत के मधुबनी ज़िले में स्थित आर.के.कॉलेज में हिंदी के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं। ईमेल ही इनका स्थायी पता है – deepakruhani@gmail.com.