महाकाल की नगरी उज्जैन में जन्मे चन्द्रकान्तदत्तात्रय भालेराव मूलरूप से इंदौर, मध्यप्रदेश के स्थायी निवासी हैं । उनचालीस वर्षों तक इंदौर विकास प्राधिकरण में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए इंदौर शहर के नवविकास में मुख्य भूमिका निभाते हुए उप वास्तुनियोजक के पद से सेवा निवृत्त हुए । अपनी सामाजिक कर्तव्यों का दायित्व निभाने की मानसिकता होने की वजह से सेवा में रहते हुए भी लेखक शहर की सामाजिक संस्थाओं से जीवंत संपर्क में रहते थे और अवसर मिलते ही सामाजिक कार्यों को करने का अल्पसा प्रयत्न करते थे । सानंद, मराठी समाज, महाराष्ट्र साहित्य सभा, हिन्दी साहित्य सभा, नाथ मंदिर आदि शहर की जानी मानी संस्थाओं के माध्यम से आज भी आप अपनी सक्रियता रखते हैं । वर्तमान में आप माऊली फाउण्डेशन मुंबई, कोलबादेवी के संचालक पद पर हैं तथा इस संस्था के माध्यम से वारी यात्रीयों की सेवा और समय-समय पर संस्था द्वारा आयोजित मेडिकल केम्प के माध्यम से अपने तन-मन-धन से सेवा कर रहे हैं । साथ ही माऊली फाउण्डेशन की इंदौर शाखा के आप अध्यक्ष भी हैं।
छत्रपति शिवाजीराजा के चरित्र से प्रेरित होने और उनको अपना आदर्श मानने वाले श्री चंद्रकांत भालेराव अपने जीवन काल में अपने आपको दिमागी तौर पर स्वस्थ रखने के लिए ‘स्वान्त-सुखाय’ हेतु कई विधाओं को सीखने का प्रयास हर पल करते रहे, जिनमें संगीत, मूर्तिकला, पठन-पाठन, लेखन, रंगमंच आदि मुख्य हैं । लेखक पर्यावरण के क्षेत्र में भी कार्य करते हैं । अपने जीवन के 66 वें वर्ष में लेखक ने अपनी प्रथम कृति के रूप में ‘स्वयंसिद्ध’ की रचना की है जो प्रकाशित होकर पाठकों के हाथों में है ।
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महाकाल की नगरी उज्जैन में जन्मे चन्द्रकान्तदत्तात्रय भालेराव मूलरूप से इंदौर, मध्यप्रदेश के स्थायी निवासी हैं । उनचालीस वर्षों तक इंदौर विकास प्राधिकरण में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए इंदौर शहर के नवविकास में मुख्य भूमिका निभाते हुए उप वास्तुनियोजक के पद से सेवा निवृत्त हुए । अपनी सामाजिक कर्तव्यों का दायित्व निभाने की मानसिकता होने की वजह से सेवा में रहते हुए भी लेखक शहर की सामाजिक संस्थाओं से जीवंत संपर्क में रहते थे और अवसर मिलते ही सामाजिक कार्यों को करने का अल्पसा प्रयत्न करते थे । सानंद, मराठी समाज, महाराष्ट्र साहित्य सभा, हिन्दी साहित्य सभा, नाथ मंदिर आदि शहर की जानी मानी संस्थाओं के माध्यम से आज भी आप अपनी सक्रियता रखते हैं । वर्तमान में आप माऊली फाउण्डेशन मुंबई, कोलबादेवी के संचालक पद पर हैं तथा इस संस्था के माध्यम से वारी यात्रीयों की सेवा और समय-समय पर संस्था द्वारा आयोजित मेडिकल केम्प के माध्यम से अपने तन-मन-धन से सेवा कर रहे हैं । साथ ही माऊली फाउण्डेशन की इंदौर शाखा के आप अध्यक्ष भी हैं।
छत्रपति शिवाजीराजा के चरित्र से प्रेरित होने और उनको अपना आदर्श मानने वाले श्री चंद्रकांत भालेराव अपने जीवन काल में अपने आपको दिमागी तौर पर स्वस्थ रखने के लिए ‘स्वान्त-सुखाय’ हेतु कई विधाओं को सीखने का प्रयास हर पल करते रहे, जिनमें संगीत, मूर्तिकला, पठन-पाठन, लेखन, रंगमंच आदि मुख्य हैं । लेखक पर्यावरण के क्षेत्र में भी कार्य करते हैं । अपने जीवन के 66 वें वर्ष में लेखक ने अपनी प्रथम कृति के रूप में ‘स्वयंसिद्ध’ की रचना की है जो प्रकाशित होकर पाठकों के हाथों में है ।