“मुझे बचपन से ही कविता लिखने व खेलों के प्रति रूचि रही है। पिता श्री
के निर्देशों के कारण मैं आज तक दुव्यर्सनों से मुक्त हूँ। सन् 2004 के आसपास मेरी
कवितायें प्रकाशित होनी आरंभ हो गयी । 2017 तक परिस्थियाँ अनुकूल न रहने से शिथिल
माहौल में ही 2018, 2019 में दो पुस्तकें लिखीं। 2021 में ‘भटका हुआ विकास’
नाम से एक पुस्तक अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज से ही प्रकाशित हुई। अब पाठकों के लिये
‘तमिस्रलोक की छलनायें’ उपलब्ध है। मेरा नाम बी. एल. यादव व स्व.
पिताजी का नाम श्री महाराजा सिंह है। मैं आज सेवा निवृत शिक्षक हूँ व मेरी जन्म
तिथि 08-01-1938 है। अभावों की दुरावस्था में मेरा लालन पालन व शिक्षा-
दीक्षा हुई किन्तु भयावह आर्थिक परिस्थियों में जो कि उन दिनों आम थी, पिता
जी ने धैर्य के साथ सत्य को थामे रखा, फलस्वरूप आज मैं उनका बेटा होकर
गौरवान्वित हूँ। वर्तमान की बर्बरतापूर्ण कुछ क्रूर घटनाओं से अवगत होते ही
दग्ध हृदय को शीतल करने का प्रयास करता हूँ।”
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“मुझे बचपन से ही कविता लिखने व खेलों के प्रति रूचि रही है। पिता श्री
के निर्देशों के कारण मैं आज तक दुव्यर्सनों से मुक्त हूँ। सन् 2004 के आसपास मेरी
कवितायें प्रकाशित होनी आरंभ हो गयी । 2017 तक परिस्थियाँ अनुकूल न रहने से शिथिल
माहौल में ही 2018, 2019 में दो पुस्तकें लिखीं। 2021 में ‘भटका हुआ विकास’
नाम से एक पुस्तक अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज से ही प्रकाशित हुई। अब पाठकों के लिये
‘तमिस्रलोक की छलनायें’ उपलब्ध है। मेरा नाम बी. एल. यादव व स्व.
पिताजी का नाम श्री महाराजा सिंह है। मैं आज सेवा निवृत शिक्षक हूँ व मेरी जन्म
तिथि 08-01-1938 है। अभावों की दुरावस्था में मेरा लालन पालन व शिक्षा-
दीक्षा हुई किन्तु भयावह आर्थिक परिस्थियों में जो कि उन दिनों आम थी, पिता
जी ने धैर्य के साथ सत्य को थामे रखा, फलस्वरूप आज मैं उनका बेटा होकर
गौरवान्वित हूँ। वर्तमान की बर्बरतापूर्ण कुछ क्रूर घटनाओं से अवगत होते ही
दग्ध हृदय को शीतल करने का प्रयास करता हूँ।”