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वरिष्ठ कवि भोलानाथ कुशवाहा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनकी कविताएँ अस्सी के दशक में जब हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आकार ले रही थीं, तभी से उन्हें रेखांकित किया जाने लगा था। नब्बे के दशक में वे हिन्दी कविता का सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर बन चुके थे। यह संग्रह ‘वह समय था’ उनका चौथा कविता संग्रह है। इसका अभिप्राय है कि वे लगातार रचनात्मक रूप से सक्रिय एवं रचनात्मक ऊर्जा से लबरेज हैं। उनकी कविताएँ वस्तु एवं रूप दोनों स्तरों पर क्रमश: समृद्ध होती गयी हैं। उनका आत्मचेतस मन अत्यंत संवेदनशील होने के साथ ही सामाजिक चेतना से भी संपृक्त है। वे व्यापक समाज-बोध के रचनाकार हैं। उनकी कविताओं में आमजन की व्यथा एवं वेदना की अनुगूँज बराबर सुनाई देती है। अपने समय एवं समाज की प्रत्येक गतिविधि के प्रति सजग भोलानाथ कुशवाहा की कविताएँ सदैव प्रतिपक्ष की भूमिका में होती हैं। उनकी रचनाधर्मिता मात्र आनन्द या विलास का माध्यम नहीं है, वरन मनुष्यता की सजग प्रहरी है। अपनी भूमिका को लेकर वे अत्यंत सचेत रहते हैं।.

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Bholanath Kushwaha

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वरिष्ठ कवि भोलानाथ कुशवाहा किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनकी कविताएँ अस्सी के दशक में जब हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आकार ले रही थीं, तभी से उन्हें रेखांकित किया जाने लगा था। नब्बे के दशक में वे हिन्दी कविता का सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर बन चुके थे। यह संग्रह ‘वह समय था’ उनका चौथा कविता संग्रह है। इसका अभिप्राय है कि वे लगातार रचनात्मक रूप से सक्रिय एवं रचनात्मक ऊर्जा से लबरेज हैं। उनकी कविताएँ वस्तु एवं रूप दोनों स्तरों पर क्रमश: समृद्ध होती गयी हैं। उनका आत्मचेतस मन अत्यंत संवेदनशील होने के साथ ही सामाजिक चेतना से भी संपृक्त है। वे व्यापक समाज-बोध के रचनाकार हैं। उनकी कविताओं में आमजन की व्यथा एवं वेदना की अनुगूँज बराबर सुनाई देती है। अपने समय एवं समाज की प्रत्येक गतिविधि के प्रति सजग भोलानाथ कुशवाहा की कविताएँ सदैव प्रतिपक्ष की भूमिका में होती हैं। उनकी रचनाधर्मिता मात्र आनन्द या विलास का माध्यम नहीं है, वरन मनुष्यता की सजग प्रहरी है। अपनी भूमिका को लेकर वे अत्यंत सचेत रहते हैं।.

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