झारखंड के किसी गुमनाम हिस्से में जीवन का पूर्वार्ध गुजारने वाले भानू प्रकाश अब देश के विभिन्न हिस्सों में विचरण कर रहे हैं। स्थायी ठिकाना कुछ किताबें और एकांत है। स्वयं से संवाद करने की आदत बढ़ते-बढ़ते लेखक बना गयी और बातों-बातों में एक कृति ‘तुझसे नारा़ज नहीं ज़िन्दगी’ तैयार हो गयी। जिसे संवेदनशील पाठकों ने काफी पसंद किया। शिक्षा से इंजिनियर, पेशे से बैंकर और मिजाज से लेखक की दूसरी कृति ‘संत मनमौजी’ फिर से पाठकों की संवेदनाओं को झकझोरने के लिए तैयार है।.
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झारखंड के किसी गुमनाम हिस्से में जीवन का पूर्वार्ध गुजारने वाले भानू प्रकाश अब देश के विभिन्न हिस्सों में विचरण कर रहे हैं। स्थायी ठिकाना कुछ किताबें और एकांत है। स्वयं से संवाद करने की आदत बढ़ते-बढ़ते लेखक बना गयी और बातों-बातों में एक कृति ‘तुझसे नारा़ज नहीं ज़िन्दगी’ तैयार हो गयी। जिसे संवेदनशील पाठकों ने काफी पसंद किया। शिक्षा से इंजिनियर, पेशे से बैंकर और मिजाज से लेखक की दूसरी कृति ‘संत मनमौजी’ फिर से पाठकों की संवेदनाओं को झकझोरने के लिए तैयार है।.