Description
यह मेरी पहली पुस्तक है और इस पुस्तक के माध्यम से मैं अपने आध्यात्मिक सफर और भावनाओं को आप लोगों के समक्ष रख रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ कि इस पुस्तक की भाषा आपके लिए सरल एवं सामान्य साबित होगी। ताकि आप सभी लोग मेरे इन शब्दों के द्वारा मेरे भाव को समझ पाए और साथ-साथ आपके जीवन मे यह विद्या भरपूर काम आये। यह विद्या मैंने विपश्यना में 10 दिन मौन रहकर सीखी एवं समझी है और अभी भी निरन्तर अभ्यास के जरिये अपने भीतर के नकारात्मक विकारों को नष्ट करने के प्रयास में लगा हुआ हूँ, ताकि जीवन की सत्यता को समझ पाऊँ। मेरी जानकारी के मुताबिक इस विद्या को सिखने की कोई उम्र नहीं है। मेरे जैसे बहुत से लोग है जो इस विद्या का लाभ ले रहे है। मैंने सोचा इस विद्या की जानकारी और लाभ इस पुस्तक के माध्यम से आपसे साझा कर सकूँ। यह विद्या कोई नई विद्या नहीं है यह बहुत ही प्राचीन विद्या है इससे पहले भी बहुत से लोगों ने इस विद्या का उल्लेख किया है। मगर कुछ विदेशी आक्रांताओं की वजह से यह विद्या विलुप्ति की कगार पर थी लेकिन हमारे कुछ महापुरुषों ने इस विद्या को सहेज कर रखा एवं अब उसका प्रचार-प्रसार सालों से हो रहा है। यह स्वयं की साँस को जागरूक रहकर जानने की विद्या है, इस साँस कि विद्या को कुछ लोग सालों से मानते आ रहे है कि ऐसी भी एक विद्या है। इस विद्या के माध्यम से बहुत लोगों ने लाभ लिया है और आज भी भरपूर लाभ ले रहे है। आप भी अपने गृहस्थ जीवन में रहकर इसका लाभ ले सकते है।
मैं इस दुर्लभ और प्राचीन विद्या को आपसे इसलिए साझा कर रहा हूँ, ताकि आज की नई युवा पीढ़ियां इस विद्या को पूर्णरूप से समझ सके, जान सके एवं समझकर अपने गृहस्थ एवं व्यावसायिक जीवन में अमल करके इसका पूर्णरूप से लाभ प्राप्त कर सके। हम सालों से इस विद्या को मानते आ रहे है, यह विद्या मनुष्य के द्वारा मानने और जानने का विषय है। हमें सिर्फ जानना है, स्वयं की अनुभूति करनी है और जानने में ही सत्यता है, मानते तो हम बरसों से आ रहे है। आप लोग अपने जीवन में बहुत कुछ मानते होंगे मगर जानते कम होंगे, तो आज में जानने और मानने को सरल करने वाला हूँ।
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