Description
चार खण्डों में फैली रणक्षेत्रम महागाथा का दूसरा खण्ड राजकुमार सुर्जन पर केन्द्रित है जो जन्मा तो मानव रूप में किन्तु नायक असुरों का बना। उसके मुख के तेज को देखकर कोई यह अनुमान भी नहीं लगा सकता कि एक दिन वह असुरेश्वर कहलायेगा। किन्तु प्रश्न यह है, कि क्या वह वास्तव में दुष्प्रवृत्ति का है? या फिर यह उन योद्धाओं द्वारा फैलायी गयी एक भ्रांति मात्र है जिन्होंने उस अट्ठारह वर्षीय युवा को छल से पराजित किया था। जब वह लौटकर आया, तो सुर्जन से दुर्भीक्ष बन चुका था परन्तु अब ऐसा कोई जीवित नहीं बचा था जिससे वह अपना प्रतिशोध ले सके। किसी प्रकार उसने अतीत में अपने साथ हुए अन्याय को विस्मृत करने का प्रयास किया। किन्तु परिस्थितियों ने उसे हस्तिनापुर के युवराज सर्वदमन (भरत) के सम्मुख ला खड़ा किया और सर्वदमन से सामना होते ही अतीत के सारे पीड़ादायक दृश्य दुर्भीक्ष के समक्ष आ खड़े हुए और उसकी प्रतिशोध की प्यास फिर जाग उठी। वह सर्वदमन का वध करने दौड़ा, किन्तु एक स्त्री उन दोनों के बीच आ खड़ी हुयी, जिसे देखकर उसे अपने शस्त्रों का त्याग करना पड़ा और एक बार फिर उसका प्रतिशोध अधूरा रह गया। दुर्भीक्ष का सर्वदमन से क्या संबंध है? कौन थी वह स्त्री जिसके पास दुर्भीक्ष के सामने खड़ी होने का हौसला था? क्या होगा आर्यावर्त के सबसे बड़े योद्धा के अपूर्ण प्रतिशोध का परिणाम?
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