Kainat -E-Gazal

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Description

समर कबीर’ को शाइरी का फ़न विरासत में मिला है,उनके वालिद-ए-मुहतरम ‘क़मर उज्जैनी साहिब (मरहूम) अपने दौर के क़ाबिल-ए-ज़िक्र शाइर थे, बड़े ख़ुश फ़िक्र और वज़ादार इंसान थे । वो अपनी तमाम आला इंसानी अक़दार जिनसे तहज़ीब-ओ-तमद्दुन को जिला मिलती है ‘क़मर’ उज्जैनी को अपने विरसे में मिली थीं, यही वो विरासत है जिसे ‘समर कबीर’ ने अपनी शनाख़्त का वसीला बनाया है ।
‘समर कबीर’ के शे`र से एक ऐसे शख़्स का किरदार उभरता है जो अपने दौर की दोग़ली सियासत और अख़लाक़ी क़दरों की पामाली का मातम गुसार है जिसे वहदत-ए-इंसानी का तसव्वुर सबसे अज़ीज़ है लेकिन क़दम-क़दम पर इंसानों के माबेन मुग़ायरत बेगानगी और फ़ासलों की गहरी ख़लीजें देख कर वो तड़प उठता है, एक तख़लीक़ी फ़नकार होने के नाते वो इस अह्द की इन सियाहियों को अपने अंदर जज़्ब कर सकता है और न ही उनके मुताबिक़ अपने आप को ढाल सकता है, दर अस्ल ‘समर कबीर की शाइरी में इसी बुनियाद पर तल्ख़ी और तंज़ के पहलू ने ज़ियादा जगह बना ली है । रिवायती मज़ामीन की तकरार के बजाय इस शाइरी में शाइर की ज़ात और उसके शिकवे और उसके अंदेशे ज़ियादा कार फ़रमा हैं जिनसे शाइर के सच्चे जज़्बों तक हमारी रसाई होती है :-
‘आइना गर ज़रा बता क्या है
एक चहरे में दूसरा क्या है’

‘और थोडा सा ज़ह्र घुलने दो
आदमी-आदमी को तरसेगा’

‘मुझसे बदज़न था कल तलक शैताँ
आज कल हम ख़याल है मेरा’

‘इस हद पे हैं तहज़ीब की मिटती हुई क़दरें
रिश्तों को ज़मीनों की तरह बाँट दिया है’

‘कल किसी हथियार से वाक़िफ़ न था
आज मीज़ाइल बना लेता है तू ‘

‘इन ग़रीब लोगों की ये अजीब मुश्किल है
सर झुका के कहते हैं सर नहीं झुकाएँगे’
‘क़दम-क़दम पे मेरे ख़्वाब जल रहे हैं यहाँ
मैं इस ज़मीन को जन्नत बनाने आया था’

Book Details

Weight 320 g
Dimensions 6 × 9 in
Pages

320

Language

Hindi

Edition

First

ISBN

9788195938834

Publisher

Anjuman Prakashan

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