Description
बहाकर मीठे दरिया को वो ज्यों सागर में ले आया,
अकेलापन मुझे इस भीड़ के मंज़र में ले आया ।
कहा जाता है ग़ज़ल का अर्थ होता है अपने महबूब से गुफ़्तगू़ करना और अक्सर ग़ज़ल महबूबा की तारीफ़ में कही जाती थी मगर वक़्त के साथ इसमें दुनिया के तमाम मसाइल भी शुमार होते गये। ग़ज़ल ज़माने का आइना हो गयी । हो भी क्यों नहीं ? मुझे लगता है जिसे महबूबा की तारीफ़ करनी आती होगी उसे ग़ज़ल कहने की नौबत ही क्यों आयेगी । मेरे लिए ग़ज़ल का मतलब है बस अपनी बात कहना ।
आप सोचेंगे कि फिर ग़ज़ल ही क्यों ? तो ग़ज़ल इसलिए क्योंकि मुझे लम्बी-चौड़ी तक़रीर करने की आदत नहीं है । मुझे बस जल्दी से अपनी बात कहनी थी और ग़ज़ल ने मुझे वो सहूलियत दे दी कि मैं बस दो मिसरों के एक शेर में अपनी बात कह सकता हूँ । मतलब की ग़ज़ल मेरे लिए वो सब है जो मैं देखता, सोचता, समझता या महसूस करता हूँ। कभी-कभी कुछ अच्छे शाइरों को पढ़ता हूँ तो लगता है वो कितनी कल्पनाएँ करते हुए कैसे-कैसे लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करते हैं और फिर कैसे-कैसे काफ़िया, रदीफ़ से उसे सजाते हैं। तब मुझे लगता है कि शायद मैं कोई शाइर हूँ ही नहीं ।मुझे तो लगता है कि आप ग़ज़ल को नहीं चुनते बल्कि ग़ज़ल आपको चुनती है ।
इस संग्रह में ग़ज़ल के जानकारों को शायद यह आपत्ति हो कि सभी ग़ज़लें प्रचलित बहरों पर क्यों नहीं हैं तो मैं पहले ही कह चुका हूँ कि मैं कोई शाइर नहीं हूँ। मैंने अपने जज़्बात को ग़ज़ल में ढ़ालते हुए वही किया जो एक कुम्हार मटकी बनाते समय करता है । वह मटकी बनाते समय उसकी नयी- नयी डिजाइन बनाने की कोशिश करता है लेकिन वह मटकी का मूल स्वरूप नहीं बदलता है । उसी प्रकार मैंने भी इस संग्रह में कुछ ग़ज़लों के लिए अपने मन से बह्र तैयार करके आपके आशीर्वाद अथवा आलोचना के लिए छोड़ दिया है।
मुझे लगता है हर शाइर की ज़िन्दगी में एक खालीपन होता है जिसे वो शायद ग़ज़ल कहके भरना चाहता है । लेकिन उसका वो खालीपन ग़ज़ल से कभी नहीं भरता । तो फिर आप सोचेंगे की फिर वो ग़ज़ल क्यों कहता है ! तो आपका ये क्यों “हवा क्यों चलती है, नदी क्यों बहती है, भगवान ने ये दुनिया क्यों बनायी”, जैसा क्यों है। यदि आपके हाथ में यह किताब है तो शुक्रिया आपका ।अब आप इसे एक पागल लड़के के जज़्बात की तरह पढ़िए और अगर आपको लगे वो पागल लड़का आपके भीतर भी है तो या तो कुछ नये ‘शे’र’ कह दीजिए या इन शेरों को गुनगुनाते हुए कहिए ये मेरे भी हैं। मेरी तरफ़ से शुक्रिया अंजुमन प्रकाशन का जिसने मुझे आप तक पहुँचा दिया।
मनु बदायूँनी?
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