Chal Akela

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डॉ. रामसमुझ मिश्र ‘अकेला’ जी नयी काव्यधारा और परम्परागत काव्यधारा के बीच एक सेतु की तरह हैं। इनमें वो सारे तत्त्व उपस्थित हैं जो शायद अब आगे आनेवाली पीढ़ी की कविता में न देखने को मिलें। ये न सिर्फ़ नयी कविता और पुरानी कविता के मध्य सेतु हैं, बल्कि नयी और पुरानी पीढ़ी के मध्य एक कड़ी भी हैं। इनका काव्य एक भावनात्मक दस्तावेज है, जिसे भविष्य में लोग पढ़कर अपने से पूर्व की पीढ़ी के लोगों के सोचने और समझने की शैली को समझ सकेंगे। उनके भावनात्मक सरोकारों की समझ विकसित कर सकेंगे। परम्परागत काव्य-विषयों के निर्वहन के साथ-साथ इन्होंने ज्वलन्त सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को भी काव्य-विषय बनाया है। जीवन और समाज के प्रत्येक क्षेत्र पर बारीकी से नज़र डालते हुए उनके अन्तर्निहित मर्मों को उद्घाटित किया है। नये और पुराने में सामंजस्य और समन्वय बनाने की इनकी प्रवृत्ति सिर्फ़ भाव-स्तर पर ही नहीं है, बल्कि भाषा के स्तर पर भी है। इसीलिए इन्होंने खड़ीबोली के साथ-साथ अवधी में भी रचनाएँ की हैं। ये इनके देसीपन की परिचायक हैं। इनके अवधी-गीत जिन लोक-संगीत की धुनों पर आधारित हैं उन्हें यद्यपि काग़ज़ पर मुद्रित शब्दों से नहीं समझा जा सकता, लेकिन उनके सूत्र-संकेत समझे जा सकते हैं। संग्रह का शीर्षक ‘चल अकेला’ अकेला जी के अकेले चलने का द्योतक नहीं है, बल्कि इनके अन्दर से निकली स्वयं की वो आवाज़ है जो इन्हें चल देने के लिए प्रेरित-स्वप्रेरित करती है। ये स्वयं से स्वयं का संवाद है। निश्चित रूप से इस काव्य-संग्रह का हर पृष्ठ आपको नयी-नयी भावभूमियों पर ले जायेगा और जैसे-जैसे इस पुस्तक में विचरण करते हुए आगे बढ़ेंगे वैसे-वैसे आपको नये-नये लोक-आलोक का अनुभव होगा।

Book Details

Weight 225 g
Dimensions 5.5 × 0.5 × 8.5 in
Author

Dr. Ram Samujh Mishr 'Akela'

Edition

First

ISBN

9788119562534

Language

Hindi

Pages

180

Publication Date

3 November 2023

Publisher

Anjuman Prakashan

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