Description
कालचिंतन किसी भी सजग साहित्यकार की अनिवार्य परिणति है। युग धर्म और युग बोध को पहचानने वाला कोई भी साहित्यकार इस तथ्य का अपवाद नहीं हो सकता। साहित्यकार, अनिवार्य रूप से न केवल अपने समय के यथार्थ को पहचानता है, बल्कि वो उसका सर्वश्रेष्ठ साक्षी भी होता है। साहित्यकार, समय की अनदेखी कर साहित्य सृजन नहीं कर सकता; समय के सापेक्ष होना उसकी विवशता है। समय का अदृश्य बेताल, साहित्यकारों के चिन्तन पर ही नहीं, बल्कि उनके सृजन पर भी हावी होता है। शायद यूँ ही अधिकतर साहित्यकारों के व्यक्तित्व में समय की अन्तध्र्वनियाँ निहित होती हैं, तो उसके कृतित्त्व में भी हमें समय का अन्तर्नाद सुनाई देता है। मनी नमन जी एक ऐसे ही सर्जक हैं, जो न केवल युगबोध को सरलता से अपने सृजन के माध्यम से रेखांकित करते हैं, बल्कि समय की अन्तध्र्वनियों को भी रेखांकित करते हैं।